Friday, April 23, 2010

तेरा ख्वाब




पलके... बंद होते हीं,

अच्छा लगता है.....

यूँ तेरा चुपके से मेरे ख्वाबों में आना,

मेरी पलकों को लबों से चूमकर,

हौले से मुझे अपने आगोश में भरना,

अच्छा लगता है...

यूँ तेरा मेरी यादों में झिलमिलाना,

उँगलियों से अपनी मेरी जुल्फों को संवारना,

पर .... पलके खुलते हीं...

अच्छा नहीं लगता,

यूँ तेरा मुझसे जुदा होना,

नज़रों से ओझल होकर,

यूँ मेरा दामन छुड़ाना...

काश कि कुछ ऐसा हो

सो जाऊं मैं उस गहरी लंबी नींद में चीर तलक,

कि कभी जुदा न हो मुझसे

तेरा ये ख्वाब दूर तलक ......








Sunday, January 24, 2010

Best Compositions



1.
नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने

मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने

खेल समझा है कहीं छोड़ न दे, भूल न जाये
काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताये न बने

ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाये न बने

इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो
क्या हाथ आयें तो उन्हें हाथ लगाये न बने

कह सके कौन कि ये जल्वागरी किसकी है
पर्दा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने

मौत की राह न देखूँ कि बिन आये न रहे
तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाये न बने

बोझ वो सर पे गिरा है कि उठाये न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने

इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब"
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने ……………ग़ालिब

2.

मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें

चल निकलते जो मय पिये होते
क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो

काश के तुम मेरे लिये होते
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना
था

दिल भी या रब कई दिये होते
आ ही जाता वो राह पर "ग़ालिब"

कोई दिन और भी जिये होते