Monday, June 15, 2009

reflection.........



नाराज़गी

क्यूँ नाराज़ है जिंदगी मुझसे इस कदर,

कि खुशियों का अख्स दिखाकर,

थमती है मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़,

दुखों कि वो दर्दनाक सी लहर.....

कल तक तो ये मंज़र था,पल दो पल की निशानी,

पर शायद अब बन चुका है ये हर पल की कहानी.....

माँगा नही जब जिंदगी से कुछ,

मिली तब हर खुशी सचमुच,

गुदगुदा गई कुछ, हंसा गई कुछ,

और बरसा गई मुझपर मोहब्बत की वो मेहर

बोया था जो बीज जिंदगी ने मेरे अन्दर,

फुट पड़ा वो प्रेम का कोंपल बनकर,

फिर जिंदगी ने सींचा उसे कुछ इस कदर,

कि लेने लगा वो इठलाती अंगडाई पल पल....

पर अचानक जाने क्या नाराज़गी छाई,

छीने जिंदगी ने मेरे हर ख्वाब इस कदर,

कि तड़प रहा है ये नन्हा मन

प्यार की एक बूंद को पल-पल,

अब तो बस आती है नज़र,

मेरे टूटे अरमानों की चिताएं हर तरफ़....

शिकायत न होती गर जिंदगी ने,

कराये न होते ये एहसास इस कदर,

शिकायत न होती गर जिंदगी ने,

थमाई न होती बिन मांगी ये खुशियाँ इस कदर,

शिकायत न होती गर जिंदगी ने,

तोडे न होते ये ख्वाब ख़ुद देकर

क्यूँ नाराज़ है जिंदगी मुझसे इस कदर,

कि खुशियों का अख्स दिखाकर,

थमती है मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़,

दुखों की वो दर्दनाक सी लहर ..........

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